चातुममहाराजिक सुत्त: भिक्षुओ, पक्ष की अष्टमी के दिन चारों महाराजाओं के अमात्य-पार्षद इस लोक में यह देखने के लिए विचरते हैं कि क्या मनुष्य-लोक के अधिकांश लोग मातृ-सेवक हैं, पितृ-सेवक हैं, श्रमण-सेवक हैं, ब्राह्मण (क्षीणास्रव)-सेवक हैं, अपने-अपने कुल में बड़ों का आदर करने वाले हैं, उपोसथ रखने वाले हैं, जागरण करने वाले हैं तथा पुण्य-कर्म करनेवाले हैं।
भिक्षुओ, पक्ष की चतुर्दशी के दिन चारों महाराजाओं के पुत्र इस लोक में यह देखने के लिए विचरते हैं कि क्या मनुष्य-लोक के अधिकांश लोग मातृ-सेवक हैं, पितृसेवक हैं, श्रमण-सेवक हैं, ब्राह्मण (क्षीणास्रव)-सेवक हैं, अपने-अपने कुल में बड़ों का आदर करने वाले हैं, उपोसथ रखने वाले हैं, जागरण करने वाले हैं, तथा पुण्य-कर्म करने वाले हैं।
भिक्षुओ, उसी प्रकार पूर्णिमा-उपोसथ के दिन चारों महाराजा स्वयं ही इस लोक में यह देखने के लिए विचरते हैं कि क्या मनुष्य-लोक के अधिकांश लोग मातृ-सेवक हैं, पितृ-सेवक हैं, श्रमण-सेवक हैं, ब्राह्मण (क्षीणास्रव)-सेवक हैं, अपने-अपने कुल में बड़ों का आदर करने वाले हैं, उपोसथ रखने वाले हैं, जागरण करने वाले हैं तथा पुण्य-कर्म करने वाले हैं।
भिक्षुओ, यदि मनुष्य-लोक में ऐसे आदमी थोड़े होते हैं जो मातृ-सेवक हों, पितृ-सेवक हों, श्रमण-सेवक हों, ब्राह्मण-सेवक हों, अपने-अपने कुल में बड़ों का आदर करने वाले हों, उपोसथ रखने वाले हों, जागरण करने वाले हों तथा पुण्य-कर्म करने वाले हों, तो भिक्षुओ, वे चारों महाराजा त्रायस्त्रिंश लोक में सुधर्मा सभा में एकत्रित हुए देवताओं को कहते हैं।
आयुष्मानो ! ऐसे आदमी थोड़े हैं जो मातृ-सेवक हैं, पितृ-सेवक हैं, श्रमण-सेवक हैं, ब्राह्मण-सेवक है, अपने-अपने कुल में बड़ों का आदर करने वाले हैं, उपोसथ रखने वाले हैं, जागरण करने वाले हैं तथा पुण्य-कर्म करने वाले हैं।’ भिक्षुओ, उससे त्रायस्त्रिंश देवता असंतुष्ट हो कहते हैं कि देवों की संख्या घटेगी और असुरों की संख्या बढ़ेगी।
लेकिन भिक्षुओ, यदि मनुष्य-लोक में ऐसे आदमी अधिक होते हैं जो मातृ-सेवक हों, पितृ-सेवक हों, श्रमण-सेवक हों, ब्राह्मण-सेवक हों, अपने-अपने कुल में बड़ों का आदर करने वाले हों, उपोसथ रखने वाले हों, जागरण करने वाले हों तथा पुण्य-कर्म करने वाले हों तो भिक्षुओ, वे चारों महाराजा त्रायस्त्रिंश लोक में सुधर्मा सभा में एकत्रित हुए देवताओं को कहते हैं।
आयुष्मानो ! ऐसे आदमी बहुत हैं जो मातृ-सेवक हैं, पितृ-सेवक हैं, श्रमण-सेवक हैं, ब्राह्मण-सेवक हैं, अपने-अपने कुल में बड़ों का आदर करने वाले हैं, जागरण करने वाले हैं तथा पुण्य-कर्म करने वाले हैं।’ भिक्षुओ, इससे त्रायस्त्रिंश देवता संतुष्ट हो कहते हैं – ‘देव बढ़ते जायेंगे और असुर नष्ट होंगे।’
- चातुद्द्सी पञ्चदसिं, या च पक्खस्स अट्ठमी।
- पाटिहारियपक्खञ्च, अट्ठङ्गसुसमागतं
- उपोसथं उपवसेयय, योपिस्स मादिसो नरो ति ॥
जो भी नर मेरे सदृश होना चाहे वह पक्ष की चतुर्दशी, पूर्णिमा, अष्टमी तथा प्रातिहारिय-पक्ष (अतिरिक्त छुट्टी) को आठ शीलों वाला उपोसथ रखे।
भिक्षुओ, देवेंद्र शक्र द्वारा कही गयी यह गाथा सुगीत नहीं है, दुर्गीत है, सुभाषित नहीं है, दुर्भाषित है। यह किसलिए? भिक्षुओ, देवेंद्र शक्र का राग, द्वेष, मोह क्षय नहीं हुआ है। भिक्षुओ, यदि कोई ऐसा भिक्षु जो अर्हत हो, क्षीणास्रव हो, श्रेष्ठ जीवन जी चुका हो, करणीय कर चुका हो, भार उतार चुका हो, सदर्थ प्राप्त कर चुका हो, भव-संयोजन क्षीण कर चुका हो, तथा सम्यक ज्ञान द्वारा विमुक्त हो गया हो, ऐसी गाथा कहे तो उसका यह कथन समुचत होगा।
- चातुद्द्सी पञ्चदसिं, या च पक्खस्स अट्ठमी।
- पाटिहारियपक्खञ्च, अट्ठङ्गसुसमागतं
- उपोसथं उपवसेयय, योपिस्स मादिसो नरो ति ॥
जो भी नर मेरे सदृश होना चाहे वह पक्ष की चतुर्दशी, पूर्णिमा, अष्टमी तथा प्रातिहारिय-पक्ष (अतिरिक्त छुट्टी) को आठ शीलों वाला उपोसथ रखे।
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यह किसलिए ? क्योंकि भिक्षुओ, वह भिक्षुराग, द्वेष, मोह रहित है।
भगवान् बुद्ध जी – अंगुत्तर निकाय
नमो बुद्धाय धम्म बंधुओं मैं राहुल गौतम बौद्ध संस्कार.कॉम का फाउंडर हूँ, मैं यहाँ बुद्धिज़्म से जुडी संपूर्ण जानकारीयों को आप सभी के लिए इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से शेयर करता हूँ, जैसे कि बौद्ध संस्कार, बुद्ध वंदना, भगवान बुद्ध, बाबा साहब, एवं बुद्धिज़्म से जुड़ी समस्त महत्वपूर्ण जानकारीयों को पूर्णतः निःशुल्क रूप से बुद्धिज़्म जनहित कल्याण के लिए रिसर्च करके आप सभी धम्म बंधुओं के लिए लिखता हूँ। जय भीम।