बाबा साहब ने कहा था शिक्षित हो संगठित हो संघर्ष करो हम इस शब्द को जब तक फॉलो नहीं करेंगे तब तक न अपना विकास कर सकेगें न इस समाज व देश का, आइये कुछ चर्चाएँ कर लेते हैं क्योकि इस तीन मूल मन्त्रों पर सारे बहुजन समाज की बुनियाद टिकी हुई है, इस विषय को पोस्ट करने का उद्देश्य व साथ ही निवेदन भी है की बहुजन समाज ज़्यादा से ज़्यादा शिक्षा को ओर आकर्षित हो, एक जुट होकर संगठित हों, और आगे बढ़ने के लिए जागरूक हो।
शिक्षित बनो संगठित रहो संघर्ष करो बाबा साहब ने क्यों कहा ?
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बाबा साहब ने शिक्षा को प्राथमिकता क्यों दिया :-
खुद शिक्षित होना और परिवार के साथ-साथ बहुजन समाज को भी शिक्षा के बारे में जागरूक करना यह अपने आप में बहुत ही बड़ा कदम है, क्योकि हम लोग जितने शिक्षित होंगे उतना अज्ञानता, अन्धविश्वास, अराजकता, तृष्णा इन सबसे हम मीलों दूर रहेंगे और जीवन बहुत ही सुखमय बीतेगा।
सिर्फ भाषाओं का ज्ञान होना शिक्षित नहीं:-
विषय का ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है उदणहरण के तौर पर कानून क्या है, हमारे अधिकार क्या हैं, कोई भी सरकारी सुविधा का लाभ कैसे लिया जाये, काम सरकारी हो या गैर सरकारी उसे करने के लिए क्या करना चाहिए किस अधिकारी या किस व्यक्ति से मिले कैसे काम हो, तमाम बातों का समाधान कैसे हो इस विषय का जानकारी होना आवश्यक है, अगर व्यक्ति शिक्षित है तो दूसरा न परेशान कर सकता है व न ही शोषण कर सकता है, क्योंकि शिक्षा के आभाव में बहुजन समाज कई वर्षों तक ग़ुलामी की बेड़ियों में बंधा था ।
यह कहना भी सही नहीं है की हमारा समाज पूरी तरह अशिक्षित है, और शिक्षा के प्रति किसी ने जागरूक नहीं किया यह संघर्ष तो तब से चला आ रहा है, जब दलितों की स्थिति बहुत दैनीय थी उन्हीं में से दलित समाज के महान आदर्शों में से हैं।
महात्मा ज्योतिबा फूले :-
जिन्हें 19वीं, सदी में मॉडर्न इंडिया का सबसे उच्चतम शूद्र कहा जाता है, परन्तु उन्हें भी भेद भाव के जात-पात के कारण सात साल की उम्र में स्कूल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था, लेकिन धन्यवाद माँ सगुनाबाई जी को जिन्होंने बाल्यावस्था में ज्योतिबा को घर में ही शिक्षा दी,
अक्सर एक सवाल आता है दिमाग में.?
क्या हम असल में शिक्षित हैं आज बहुजन समुदाय में कितने ऐसे लोग हैं जो काफी ऊँचे ओहदे पर उनकी अच्छी खासी पोज़िशन भी है, लेकिन जब बाबा साहब बुद्ध भगवन से जुड़े किसी कार्यक्रम में सामाजिक तौर पर कार्य करने व उसमे शामिल होने की बारी आती है तो उसमे साथ खड़े होने से पीछे हटने लगते हैं यहाँ तक की अपनी पहचान भी छुपाने लगते हैं की हम इस समुदाय के नहीं हैं
संगठित रहना क्यों आवश्यक है :-
एक अच्छा सभ्य और मज़बूत समाज स्थापित करने के लिए सिर्फ शिक्षित होना ही ज़रूरी नहीं साथ ही संगठित होना बहुत आवश्यक है क्योकि जब तक एक जुट नहीं होंगे, संगठित होने की विचारधारा से जुड़ेंगे नहीं तब तक एकता नहीं हो सकती न ही आगे बढ़ सकते हैं न कोई लड़ाई लड़ सकते हैं।
संगठित का मतलब सिर्फ इतना नहीं कि आप किसी सामाजिक संगठन या किसी सोशल मीडिया फेसबुक, व्हाट्सप ग्रुप से जुड़े हो तो आप संगठित हो गए, पहले आप घर परिवार, अपने लोगों में संगठित हों, क्योकि संगठित होकर अपने हक़ के लिए आगे कदम बढ़ा सकते हैं और कोई भी कार्य एक जुट होकर करने में सफलता मिलती है।
अगर हम ग्रामीण स्तर की बात करें:-
ख़ास कर गांव की तो सबसे पहले बहुजन समाज अपने परिवार में ही संगठित नहीं हैं, भाई-भाई संगठित नहीं हैं एक ही छत के नीचे घर के दो हिस्से बाँट कर रह रहे हैं, बाबा साहब ने कहा था संगठित हों, क्या? ऐसे में हम में कह सकते हैं पूरी तरह संगठित हैं ? इसका फायदा दूसरे वर्ग के लोग उठाते हैं, और बहुजन समाज को कमज़ोर समझ आये दिन अत्याचार करते रहते हैं।
संघर्ष का असल अर्थ परिश्रम से है :-
बाबा साहब चाहते थे कि बहुजन समाज के लोग खुद को इस तरह स्थापित कर ले ताकि किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े कोई किसी की गुलामी न करे, खुद का रोज़गार हो, खुद की ज़मीन हो, किसी के द्वारा ग़ुलामी की बेड़ियाँ न पहनाई जा सकें।
जब तक शिक्षित और संगठित नहीं होंगें तब तक संघर्ष नहीं कर सकते क्योंकि बहुजन समाज एक ऐसा समाज है काफी लोग बिखरे हुए हैं आपस में एक जुट नहीं हैं अपनों में ही एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या व जलन की भावना रखते हैं बिना ज्ञान के व संगठित हुए अपने हक़ के लिए संघर्ष नहीं कर सकते हैं,
संघर्ष का तात्पर्य ये नहीं की उठा लो तलवार और जंग के मैदान में पहुँच जाओ बाबा साहब ने बौद्ध धर्म क्यों अपनया क्यों दीक्षा लिया क्योंकी बुद्धिज़्म में मानव मानव एक समान की विचारधारा व अहिंसा वादी विचारों से ताल्लुक़ रखता है ख़ुद को शांत रखना दूसरों की मदत करना यह मुख्य उद्देश्य है।
वर्तमान की बात करें तो संघर्ष क्या होता है:-
बाबा साहब ने इस बात का अहसास ही नहीं होने दिया सच बात तो यह है, पर उनके तीन मूल मंत्र में से संघर्ष भी एक है जो बहुजनों को देकर चले गए, असली संघर्ष तो बाबा साहब ने किया, ये बात तो आज के दौर में कुछ लोग जैसे भूल ही चुके हैं।
संघर्ष बाबा साहब ने किया पढ़ाई, छुआ छूत, तथा जात पात में संघर्ष किया आज उन्ही की बदौलत बहुजन समाज को एक आम नागरिक के जैसे सुख सुविधाओं का लाभ लेने का हक़ मिला और एक सम्मान का जीवन जी रहे हैं ।
बाबा साहब का जीवन पूरा संघर्ष मय बीता वो चाहते तो ब्रिटिश गवर्नमेंट में किसी अच्छे ऑफिसर रैंक की नौकरी कर लेते और ज़िन्दगी अपनी बहुत ही सुखमय व्यतीत करते, जबकि उन्हें कई जगहों से ऑफर भी मिला पर नहीं।
उन्होंने बहुजनों के उद्धार का बेडा उठा लिया था, और संघर्ष करते रहे अपनी आखरी साँस तक लड़े पर जो उन्होंने ठाना था उसमे सफलता मिली ये सफलता उनकी अकेले की नहीं बल्कि पूरे बहुजन समाज के लिए थी।
बहुजन समाज अभी भी पीछे है:-
शायद इसकी वजह ये है, कि शुरू से दबाया गया, डराया गया, शिक्षा दूर रखा, अन्धविश्वास से ग्रसित कर हमेशा प्रताणित किया गया इसका मुख्य कारण यह भी है, जिस वजह ये बिखर गए और आज भी उभर नहीं पा रहे हैं किसी भी हक़ की लड़ाई लड़ने से डरते हैं, क्योकि जल्दी कोई साथ नहीं देता है।
नमो बुद्धाय धम्म बंधुओं मैं राहुल गौतम बौद्ध संस्कार.कॉम का फाउंडर हूँ, मैं यहाँ बुद्धिज़्म से जुडी संपूर्ण जानकारीयों को आप सभी के लिए इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से शेयर करता हूँ, जैसे कि बौद्ध संस्कार, बुद्ध वंदना, भगवान बुद्ध, बाबा साहब, एवं बुद्धिज़्म से जुड़ी समस्त महत्वपूर्ण जानकारीयों को पूर्णतः निःशुल्क रूप से बुद्धिज़्म जनहित कल्याण के लिए रिसर्च करके आप सभी धम्म बंधुओं के लिए लिखता हूँ। जय भीम।