शिक्षित बनो संगठित रहो संघर्ष करो बाबा साहब ने क्यों कहा ?

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बाबा साहब ने कहा था शिक्षित हो संगठित हो संघर्ष करो हम इस शब्द को जब तक फॉलो नहीं करेंगे तब तक न अपना विकास कर सकेगें न इस समाज व देश का, आइये कुछ चर्चाएँ कर लेते हैं क्योकि इस तीन मूल मन्त्रों पर सारे बहुजन समाज की बुनियाद टिकी हुई है, इस विषय को पोस्ट करने का उद्देश्य व साथ ही निवेदन भी है की बहुजन समाज ज़्यादा से ज़्यादा शिक्षा को ओर आकर्षित हो, एक जुट होकर संगठित हों, और आगे बढ़ने के लिए जागरूक हो।

शिक्षित बनो संगठित रहो संघर्ष करो बाबा साहब ने क्यों कहा ?

Image:flickr.com

बाबा साहब ने शिक्षा को प्राथमिकता क्यों दिया :- 

खुद शिक्षित होना और परिवार के साथ-साथ बहुजन समाज को भी शिक्षा के बारे में जागरूक करना यह अपने आप में बहुत ही बड़ा कदम है, क्योकि हम लोग जितने शिक्षित होंगे उतना अज्ञानता, अन्धविश्वास, अराजकता, तृष्णा इन सबसे हम मीलों दूर रहेंगे और जीवन बहुत ही सुखमय बीतेगा।

बहुजन समाज पूर्णतः ढंग से शिक्षित हो जाये तो लगभग 80% समस्यांए वैसे ही कम हो जाएँ जब तक शिक्षित नहीं होंगे तबतक सामाजिक व पारिवारिक परेशानियों छुटकारा नहीं मिल सकता इसलिए दोस्तों सबसे पहले शिक्षित खुद हो व दूसरों को शिक्षित करें।

सिर्फ भाषाओं का ज्ञान होना शिक्षित नहीं:- 

विषय का ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है उदणहरण के तौर पर कानून क्या है, हमारे अधिकार क्या हैं, कोई भी सरकारी सुविधा का लाभ कैसे लिया जाये, काम सरकारी हो या गैर सरकारी उसे करने के लिए क्या करना चाहिए किस अधिकारी या किस व्यक्ति से मिले कैसे काम हो, तमाम बातों का समाधान कैसे हो इस विषय का जानकारी होना आवश्यक है, अगर व्यक्ति शिक्षित है तो दूसरा न परेशान कर सकता है व न ही शोषण कर सकता है, क्योंकि शिक्षा के आभाव में बहुजन समाज कई वर्षों तक ग़ुलामी की बेड़ियों में बंधा था 

यह कहना भी सही नहीं है की हमारा समाज पूरी तरह अशिक्षित है, और शिक्षा के प्रति किसी ने जागरूक नहीं किया यह संघर्ष तो तब से चला आ रहा है, जब दलितों की स्थिति बहुत दैनीय थी उन्हीं में से दलित समाज के महान आदर्शों में से हैं। 

महात्मा ज्योतिबा फूले :- 

जिन्हें 19वीं, सदी में मॉडर्न इंडिया का सबसे उच्चतम शूद्र कहा जाता है, परन्तु उन्हें भी भेद भाव के जात-पात के कारण सात साल की उम्र में स्कूल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था, लेकिन धन्यवाद माँ सगुनाबाई जी को जिन्होंने बाल्यावस्था में ज्योतिबा को घर में ही शिक्षा दी,

ज्योतिबा फूले जी ने उस दौर में शिक्षा बढ़ावा दिया जिस समय बहुजनों को क्लास में बैठना तो दूर स्कूल के आस-पास भटकने का भी हक़ नहीं था, छुआ-छूत का इतना बुरा प्रभाव था, की वो चुपके चुपके शूद्रों और लड़कियों को घर लाकर पढ़ते, फिर उन बच्चों को चुपके से उनके घर जाकर छोड़ आते थे
 
कहने का मतलब यह है मित्रों उस ज़माने की तरह आज कोई छुआ-छूत की दीवार न रही, बाबा साहब व अन्य सहयोगियों ने बहुजनों को जो हक़ दिलाया, ज़िन्दगी नर्क से स्वर्ग बनाया फिर भी क्यों पीछे हो शिक्षित होकर बाबा साहब का मिशन आगे बढ़ाओ।

अक्सर एक सवाल आता है दिमाग में.? 

क्या हम असल में शिक्षित हैं  आज बहुजन समुदाय में कितने ऐसे लोग हैं जो काफी ऊँचे ओहदे पर उनकी अच्छी खासी पोज़िशन भी है, लेकिन जब बाबा साहब बुद्ध भगवन से जुड़े किसी कार्यक्रम में सामाजिक तौर पर कार्य करने व उसमे शामिल होने की बारी आती है तो उसमे साथ खड़े होने से पीछे हटने लगते हैं यहाँ तक की अपनी पहचान भी छुपाने लगते हैं की हम इस समुदाय के नहीं हैं

ऐसे लोग अगर शिक्षित है तो सिर्फ बाबा साहब की वजह से, ठीक से उठने बैठने का तरीका नसीब हुआ तो सिर्फ बुद्धिज़्म की वजह से जो आज ये अफसर बनने का मौका मिल रहा सबको, भूलो मत याद करो बहुजन समाज तो वो था, जिनके गले में मटका कमर पे झाड़ू और हाथ पैर में ग़ुलामी की बेड़ियाँ थीं, आज गले में टाई जेब में रुमाल और बदन पे ब्रांडेड कपड़े, जहां मर्ज़ी आते जाते अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाते आराम से सोते हैं, परन्तु बहुजन समाज के कार्य में हिस्सा लेने से पीछे हट जाते हैं।
 
बहुजन समाज में कुछ इस तरह के व्यक्ति भी मौजूद हैं, जो काफी पढ़े लिखे वेल क्वालीफाई परन्तु उन्हें बुद्धिज़्म से जुडी बातो पर न तो उनका कोई ओपिनियन है न ही इंट्रेस्ट ऐसे में हम क्या शिक्षित हो गए.? बिलकुल नहीं हम शिक्षित हो कर आज भी अशिक्षित हैं

संगठित रहना क्यों आवश्यक है :- 

एक अच्छा सभ्य और मज़बूत समाज स्थापित करने के लिए सिर्फ शिक्षित होना ही ज़रूरी नहीं साथ ही संगठित होना बहुत आवश्यक है क्योकि जब तक एक जुट नहीं होंगे, संगठित होने की विचारधारा से जुड़ेंगे नहीं तब तक एकता नहीं हो सकती न ही आगे बढ़ सकते हैं न कोई लड़ाई लड़ सकते हैं।

संगठित का मतलब सिर्फ इतना नहीं कि आप किसी सामाजिक संगठन या किसी सोशल मीडिया फेसबुक, व्हाट्सप ग्रुप से जुड़े हो तो आप संगठित हो गए, पहले आप घर परिवार, अपने लोगों में संगठित हों, क्योकि संगठित होकर अपने हक़ के लिए आगे कदम बढ़ा सकते हैं और कोई भी कार्य एक जुट होकर करने में सफलता मिलती है।

अगर मौजूदा हाल की बात करें तो बहुजन समाज में से कुछ ऐसे भी लोग है, जो बहुत तेज़ी के साथ बहुजनों की मदद करने उनकी आवाज़ बुलंद करने में अच्छा खासा सहयोग कर रहे हैं, परन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो अपने सामाजिक कार्यक्रम से दूर भागते हैं, अपने ही लोगों में छुपते फिरते हैं तो यह सोचने का विषय है, इस तरह बहुजन समाज पूरी तरह कैसे संगठित हुआ। 

अगर हम ग्रामीण स्तर की बात करें:- 

ख़ास कर गांव की तो सबसे पहले बहुजन समाज अपने परिवार में ही संगठित नहीं हैं, भाई-भाई संगठित नहीं हैं एक ही छत के नीचे घर के दो हिस्से बाँट कर रह रहे हैं, बाबा साहब ने कहा था संगठित हों, क्या? ऐसे में हम में कह सकते हैं पूरी तरह संगठित हैं ? इसका फायदा दूसरे वर्ग के लोग उठाते हैं, और बहुजन समाज को कमज़ोर समझ आये दिन अत्याचार करते रहते हैं। 

जब आप अपने घर परिवार में संगठित नहीं हैं, जो कि अपने सगे सम्बन्धी हैं तो आप समाज में ये कैसे कह सकते हो की भाई मैं तो पूरी तरह से संगठित हूँ, अलग-अलग भागने से शक्तियां बिखर जाती इस लिए एक जुट होने की बहुत आवश्यकता है। 
 
लेकिन मैं यहाँ भी कहना चाहूंगा की बहुत से ऐसे भी बुद्धजीवी हैं, जो पूरी तरह से बुद्धिज़्म व अम्बेडकर फॉलोवर हैं, और शाख को बचाये रखे हैं जगह-जगह प्रोग्राम करते हैं लोगों को जागरूक करते हैं बाबा साहब, बुद्ध भगवन के संदेश व उद्देश्य की चर्चा करते हैं, ऐसे में उन जगहों पर ज़रूर जाये उनकी वाणी सुने उनके विचार सुनें। 

संघर्ष का असल अर्थ परिश्रम से है :- 

बाबा साहब चाहते थे कि बहुजन समाज के लोग खुद को इस तरह स्थापित कर ले ताकि किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े कोई किसी की गुलामी न करे, खुद का रोज़गार हो, खुद की ज़मीन हो, किसी के द्वारा ग़ुलामी की बेड़ियाँ न पहनाई जा सकें।

जब तक शिक्षित और संगठित नहीं होंगें तब तक संघर्ष नहीं कर सकते क्योंकि बहुजन समाज एक ऐसा समाज है काफी लोग बिखरे हुए हैं आपस में एक जुट नहीं हैं अपनों में ही एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या व जलन की भावना रखते हैं बिना ज्ञान के व संगठित हुए अपने हक़ के लिए संघर्ष नहीं कर सकते हैं,

संघर्ष का तात्पर्य ये नहीं की उठा लो तलवार और जंग के मैदान में पहुँच जाओ बाबा साहब ने बौद्ध धर्म क्यों अपनया क्यों दीक्षा लिया क्योंकी बुद्धिज़्म में मानव मानव एक समान की विचारधारा व अहिंसा वादी विचारों से ताल्लुक़ रखता है ख़ुद को शांत रखना दूसरों की मदत करना यह मुख्य उद्देश्य है

वर्तमान की बात करें तो संघर्ष क्या होता है:- 

बाबा साहब ने इस बात का अहसास ही नहीं होने दिया सच बात तो यह है, पर उनके तीन मूल मंत्र में से संघर्ष भी एक है जो बहुजनों को देकर चले गए, असली संघर्ष तो बाबा साहब ने किया, ये बात तो आज के दौर में कुछ लोग जैसे भूल ही चुके हैं।

संघर्ष बाबा साहब ने किया पढ़ाई, छुआ छूत, तथा जात पात में संघर्ष किया आज उन्ही की बदौलत बहुजन समाज को एक आम नागरिक के जैसे सुख सुविधाओं का लाभ लेने का हक़ मिला और एक सम्मान का जीवन जी रहे हैं ।


बाबा साहब का जीवन पूरा संघर्ष मय बीता वो चाहते तो ब्रिटिश गवर्नमेंट में किसी अच्छे ऑफिसर रैंक की नौकरी कर लेते और ज़िन्दगी अपनी बहुत ही सुखमय व्यतीत करते, जबकि उन्हें कई जगहों से ऑफर भी मिला पर नहीं।

उन्होंने बहुजनों के उद्धार का बेडा उठा लिया था, और संघर्ष करते रहे अपनी आखरी साँस तक लड़े पर जो उन्होंने ठाना था उसमे सफलता मिली ये सफलता उनकी अकेले की नहीं बल्कि पूरे बहुजन समाज के लिए थी। 

बहुजन समाज अभी भी पीछे है:- 

शायद इसकी वजह ये है, कि शुरू से दबाया गया, डराया गया, शिक्षा दूर रखा, अन्धविश्वास से ग्रसित कर हमेशा प्रताणित किया गया इसका मुख्य कारण यह भी है, जिस वजह ये बिखर गए और आज भी उभर नहीं पा रहे हैं किसी भी हक़ की लड़ाई लड़ने से डरते हैं, क्योकि जल्दी कोई साथ नहीं देता है

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