आखिर डॉ. अंबेडकर जी ने विजयादशमी को ही दीक्षा क्यों ली?

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डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें हम बाबासाहेब के नाम से जानते हैं, भारतीय समाज के इतिहास में एक महान सुधारक, चिंतक और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। उनके जीवन के हर कदम में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों की गहरी झलक मिलती है। उनके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णयों में से एक था 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म में दीक्षा लेना। इस ऐतिहासिक घटना का संबंध विजयादशमी के दिन से क्यों जोड़ा गया, यह प्रश्न हमेशा से ही लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय रहा है।

इस लेख में हम जानेंगे कि बाबासाहेब अंबेडकर ने विजयादशमी के दिन बौद्ध धर्म में दीक्षा क्यों ली, इसका सामाजिक, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व क्या है, और यह घटना भारतीय समाज पर किस प्रकार से प्रभाव डालती है।

विजयादशमी का महत्व

Importance of Vijayadashami

विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, भारत में एक प्रमुख त्यौहार है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह दिन भगवान राम द्वारा रावण का वध करने और देवी दुर्गा के महिषासुर पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह पर्व समाज में अन्याय, असमानता और अधर्म के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देता है।

बाबासाहेब अंबेडकर ने इस दिन का चयन सोच-समझकर किया था, क्योंकि विजयादशमी केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक रूप से भी एक नई शुरुआत और बुराई के खात्मे का संकेत देती है।

बौद्ध धर्म में दीक्षा का निर्णय

Baba sahab Decision to Initiate into Buddhism

डॉ. अंबेडकर का जीवन संघर्ष और असमानता के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक रहा है। उन्हें भारतीय जाति-प्रथा के अन्यायपूर्ण और अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा। अपनी शिक्षा और विचारधारा के बल पर वे इस व्यवस्था को बदलने के लिए सतत प्रयास करते रहे।

1927 में, महाड़ सत्याग्रह के दौरान, उन्होंने “मनुस्मृति” को जलाकर हिंदू धर्म की असमानता और जाति-प्रथा का विरोध किया था। इसके बाद उनके मन में यह विचार पक्का हो गया कि उन्हें एक ऐसे धर्म की आवश्यकता है जो समानता, करुणा और स्वतंत्रता पर आधारित हो।

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर बौद्ध धर्म की ओर झुकाव

Baba Saheb Dr. Bhimrao Ambedkar’s inclination towards Buddhism

बौद्ध धर्म का मूल सिद्धांत चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर आधारित है, जो मानवीय जीवन को दुखों से मुक्त कराता है। इस धर्म में जाति-प्रथा, भेदभाव और असमानता का कोई स्थान नहीं है। बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म को गहराई से अध्ययन किया और पाया कि यह धर्म न केवल सामाजिक समानता की बात करता है, बल्कि व्यक्तिगत विकास और शांति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

1956 में, उन्होंने नागपुर में बौद्ध धर्म में दीक्षा लेने का निर्णय लिया। यह निर्णय केवल व्यक्तिगत धर्मांतरण नहीं था, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का आह्वान भी था।

विजयादशमी का चयन क्यों?

बाबासाहेब अंबेडकर ने विजयादशमी को दीक्षा लेने के लिए निम्नलिखित कारणों से चुना:

  1. सामाजिक बुराई पर विजय का प्रतीक
    विजयादशमी अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है। बाबासाहेब ने हिंदू धर्म की जाति-प्रथा और सामाजिक असमानता को “बुराई” के रूप में देखा और इसे समाप्त करने के लिए इस दिन को चुना।
  2. एक नई शुरुआत का संदेश
    विजयादशमी केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का भी प्रतीक है। बाबासाहेब ने इस दिन को अपने अनुयायियों के लिए एक नई सामाजिक और धार्मिक दिशा प्रदान करने के लिए चुना।
  3. सामाजिक क्रांति का आह्वान
    विजयादशमी का दिन भारतीय समाज में परिवर्तन और सुधार के लिए उपयुक्त था। इस दिन, बाबासाहेब ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा ली, जो भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी धर्मांतरण घटनाओं में से एक थी।
  4. संविधान निर्माण के मूल्यों का समर्थन
    डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान के निर्माण में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को शामिल किया। बौद्ध धर्म में दीक्षा लेना उनके द्वारा बनाए गए संविधान के मूल्यों का एक जीवंत उदाहरण था।

दीक्षा समारोह का विवरण

Details of the initiation ceremony

14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के दीक्षाभूमि में डॉ. अंबेडकर ने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। इस दौरान उन्होंने पंचशील और त्रिरत्न की शपथ ली। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि वे हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों और परंपराओं को त्यागें और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का पालन करें।

इस समारोह में लाखों लोगों ने भाग लिया और बौद्ध धर्म को अपनाया। यह केवल धर्मांतरण नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और स्वतंत्रता की दिशा में एक बड़ा कदम था।

बौद्ध धर्म और डॉ. भीमराव अंबेडकर का सपना

Buddhism and the dream of Dr. Bhimrao Ambedkar

डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को अपनाकर यह संदेश दिया कि मानव जीवन की गरिमा और समानता के बिना समाज का विकास संभव नहीं है। उनका मानना था कि बौद्ध धर्म न केवल भारतीय समाज में सुधार लाएगा, बल्कि यह पूरी मानवता के लिए एक आदर्श स्थापित करेगा।

बाबासाहेब ने अपने अनुयायियों को 22 शपथों का पालन करने की सलाह दी, जो सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने और धर्मांतरण को सही दिशा देने के लिए आवश्यक थीं।

धम्म दीक्षा के बाद का प्रभाव

Influence after Dhamma Diksha

बाबासाहेब अंबेडकर के धर्मांतरण का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह घटना दलित समाज के लिए एक प्रेरणा बन गई। इससे न केवल उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी, बल्कि सामाजिक समानता और मानवाधिकारों की लड़ाई में भी एक नई ऊर्जा आई।

बौद्ध धर्म में दीक्षा लेने के बाद बाबासाहेब ने सामाजिक न्याय और समानता के अपने मिशन को और मजबूती से आगे बढ़ाया। यह घटना भारतीय इतिहास में सामाजिक सुधारों और क्रांतियों का एक अहम अध्याय बन गई।

निष्कर्ष:

बाबासाहेब अंबेडकर का विजयादशमी के दिन बौद्ध धर्म में दीक्षा लेना केवल एक धार्मिक घटना नहीं थी, बल्कि यह सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों की ओर एक बड़ा कदम था। इसने भारतीय समाज में बदलाव की एक नई लहर पैदा की और यह संदेश दिया कि असमानता और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में धर्म, विचारधारा और नैतिकता का कितना बड़ा योगदान हो सकता है।

डॉ. अंबेडकर का यह निर्णय आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और यह दिखाता है कि सच्ची विजय अच्छाई, समानता और न्याय की स्थापना में है।

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