क्या बौद्ध धम्म Non Vegetarian के विरोधी हैं?

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बौद्ध धर्म, जिसे अक्सर “धम्म” कहा जाता है, एक गहन और व्यापक आध्यात्मिक दर्शन है जो भगवान बुद्ध के उपदेशों पर आधारित है। इसका मूल उद्देश्य है सभी प्राणियों के लिए करुणा और अहिंसा का प्रचार। इस संदर्भ में, Non Vegetarian (मांस खाने का अभ्यास) पर बौद्ध धर्म का दृष्टिकोण सदियों से चर्चा और बहस का विषय रहा है।

आइए बौद्ध धम्म में Non Vegetarian आहार विषय को विस्तार से समझते हैं और यह जानने का प्रयास करते हैं कि क्या बौद्ध धम्म वास्तव में मांसाहार के विरोधी है।

बौद्ध धम्म और Non Vegetarian के मूल सिद्धांत

बौद्ध धम्म Non Vegetarian सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है अहिंसा (अविहिंसा)। यह सिद्धांत कहता है कि किसी भी जीव को नुकसान पहुंचाना या उसकी हत्या करना अनैतिक है। बुद्ध के उपदेशों में यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि सभी प्राणी, चाहे वे छोटे हों या बड़े, समान रूप से दुःख और सुख का अनुभव करते हैं।

बौद्ध धर्म के अनुसार, पाँच प्रमुख शील (सिद्धांत) हैं, जो अनुयायियों को नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। इनमें से पहला शील है:
“प्राणी हिंसा से बचना।”
इसका मतलब है कि किसी भी जीवित प्राणी की हत्या न करना।

लेकिन, प्रश्न यह उठता है कि क्या मांस खाना भी इसी हिंसा का हिस्सा है? बौद्ध ग्रंथों और परंपराओं में इस विषय पर भिन्न दृष्टिकोण मिलते हैं।

गौतम बुद्ध और Non Vegetarian

भगवान बुद्ध ने अपने जीवनकाल में मांसाहार को लेकर स्पष्ट रूप से एक सामान्य और लचीला दृष्टिकोण अपनाया। कई प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि बुद्ध स्वयं कभी-कभी मांसाहार ग्रहण करते थे, लेकिन कुछ शर्तों के तहत। उन्होंने अपने भिक्षुओं के लिए भी यह नियम बनाया था कि वे भिक्षा में जो भी भोजन प्राप्त करें, उसे ग्रहण कर सकते हैं।

“त्रि-शुद्ध मांस” का नियम:
बुद्ध ने यह स्पष्ट किया कि यदि मांस निम्नलिखित तीन स्थितियों में आता है, तो इसे ग्रहण करना स्वीकार्य है:
  1. अगर उस जीव की हत्या भिक्षु के लिए नहीं की गई हो।
  2. अगर भिक्षु ने हत्या की प्रक्रिया को न देखा हो।
  3. अगर भिक्षु को संदेह न हो कि मांस उनके लिए मारा गया है।

इस नियम का उद्देश्य था कि भिक्षु भोजन की भिक्षा मांगते समय किसी पर बोझ न बनें और खाने के लिए कोई भेदभाव न करें।

महायान और हीनयान परंपराओं का दृष्टिकोण

बौद्ध धर्म मुख्य रूप से दो प्रमुख शाखाओं में विभाजित है: हीनयान (थेरवाद) और महायान। इन दोनों परंपराओं का मांसाहार के प्रति दृष्टिकोण भिन्न है।

1. थेरवाद (हीनयान):
थेरवाद परंपरा प्राचीन बौद्ध ग्रंथों और मूल उपदेशों का पालन करती है। इस परंपरा के अनुयायी मांसाहार को पूर्णतया वर्जित नहीं मानते। उनके अनुसार, अगर भिक्षा में मांस मिलता है और वह “त्रि-शुद्ध” नियम के तहत आता है, तो उसे खाना स्वीकार्य है।
1. महायान:
महायान परंपरा करुणा और अहिंसा पर अधिक जोर देती है। उनके अनुसार, सभी प्राणियों के प्रति करुणा रखना अनिवार्य है, और मांसाहार इससे मेल नहीं खाता। इस परंपरा में मांसाहार को सख्ती से वर्जित किया गया है। महायान सूत्रों जैसे लंकावतार सूत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बौद्ध अनुयायियों को मांस नहीं खाना चाहिए, क्योंकि यह करुणा के सिद्धांतों के विपरीत है।

बौद्ध देशों में Non Vegetarian की स्थिति

बौद्ध धर्म आज भी कई देशों में प्रचलित है, जैसे थाईलैंड, श्रीलंका, जापान, चीन, और तिब्बत। इन देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मांसाहार के प्रति दृष्टिकोण उनके सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

थाईलैंड और श्रीलंका:
थेरवाद परंपरा का अनुसरण करने वाले इन देशों में बौद्ध भिक्षु “त्रि-शुद्ध” मांस खाते हैं। लेकिन आम जनता के बीच शाकाहार को बढ़ावा दिया जाता है।
1. तिब्बत:
तिब्बती बौद्ध धर्म (महायान परंपरा) के अनुयायी ठंडी जलवायु के कारण मांस खाते हैं, लेकिन इसे कम से कम रखने का प्रयास करते हैं।
2. जापान और चीन:
महायान परंपरा के प्रभाव वाले इन देशों में शाकाहार को प्राथमिकता दी जाती है। कई मंदिरों में मांसाहार वर्जित है, और बौद्ध भिक्षु केवल शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं।

आध्यात्मिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण

बौद्ध धर्म का मांसाहार पर दृष्टिकोण केवल नैतिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पर्यावरण और आध्यात्मिकता का भी महत्व है।

1. आध्यात्मिक प्रभाव:
बौद्ध मान्यता है कि मांसाहार क्रोध, घृणा, और लोभ जैसी भावनाओं को बढ़ा सकता है, जो ध्यान और आत्म-शुद्धि के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती हैं।
2. पर्यावरणीय प्रभाव:
बौद्ध धर्म प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान का समर्थन करता है। मांस उत्पादन प्रक्रिया पृथ्वी के संसाधनों पर भारी दबाव डालती है। इसलिए, शाकाहार को पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर विकल्प माना जाता है।

आधुनिक समय में बौद्ध धम्म और Non Vegetarian

आधुनिक युग में, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के बीच मांसाहार को लेकर जागरूकता बढ़ी है। कई बौद्ध संगठनों ने शाकाहार को अपनाने और प्रचारित करने का काम किया है।

आज, कई बौद्ध अनुयायी व्यक्तिगत रूप से मांसाहार का त्याग करते हैं, भले ही उनकी परंपरा इसे वर्जित न करती हो। इसका मुख्य कारण है करुणा, पर्यावरणीय जागरूकता, और स्वस्थ जीवनशैली।

निष्कर्ष:

बौद्ध धर्म और मांसाहार का संबंध सरल नहीं है; यह विभिन्न परंपराओं, परिस्थितियों, और व्यक्तिगत विश्वासों पर निर्भर करता है। हालांकि, बौद्ध धर्म का मूल संदेश करुणा और अहिंसा पर आधारित है, जो शाकाहार को अधिक समर्थन देता है।

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अगर आप बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं या इससे प्रेरणा लेते हैं, तो यह आपका व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है कि आप मांसाहार अपनाते हैं या त्यागते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने कर्मों से सभी प्राणियों के प्रति करुणा और सम्मान का भाव बनाए रखें।

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इस प्रकार, यह कहना सही होगा कि बौद्ध धर्म मांसाहार का पूर्ण विरोधी नहीं है, लेकिन यह शाकाहार को नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बेहतर विकल्प मानता है।

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