बौद्ध संस्कार में मृत्यु बाद अस्थि क्या करते हैं?

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तथागत बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पहले संघ में मृत्यु के प्रसंग आये है। जिसमे बुद्ध से उम्र में बड़े या छोटे का म्रत्यु हुवा है, अरहंत भुक्खु का परिनिर्वाण या सैखिय का मृत्यु के प्रसंग वगैरा पाली साहित्य में उलेख मिलता है। उनमें मोटे-तौर पर अरहंत भुक्खु के अस्थि पर स्तूप बनाकर उनकी पूजा करने की पंरपरा रही है। baudh sanskar me marne ke baad kya krte hain.

बौद्ध धर्म में मरने के बाद क्या होता है?

दरअसल बौद्ध-धम्म की दर्शनशास्र में ऐसी कोई मान्यता फ़िलहाल तो नही है, कि मृतक के शरीर की अस्थियां पर कोई ख़ास कर्मकांड करने से मृतक को मोक्ष के द्वार या निर्वाण मिल जाये, या ऐसी भी मान्यता नही है कि बौद्ध धर्मीय के मृत्यु बाद केवल ऐसा ही विधि या कर्मकांड करना ही चाहिए। बौद्ध धम्म की पंरपरा के बारे एक बात समझ लेनी आवश्यक है, कि बौद्ध धम्म किसी विशेष परंपरा या सामाजिक सस्कार से जकड़ा हुवा नही रहा है लेकिन जिस देश या सस्कृति में गया उसमे खुद को ढल दिया है।

भारतीय सिंधु घाटी की हरपन्न सस्कृति में तीन प्रकार के लोक समूह दिखते है जिसमे राज्यकर्ता (रॉयल), अधिकारी एवं सामान्यजन के निवास मिलते है। जिसमे  “गोल थुपा” मिले है,  जिसमे कोई कंकाल नही है। और गांव से थोड़ा दूर श्मसान भूमि में दफन किये हुवे कंकाल मिले है। जहा ऐसा लगता है कि सम्राट या आध्यात्मिक लोगो के लिए थुपा बनवाये जाते होंगे औऱ सामान्यजन को श्मसान भुमी में दफन करते होंगे। एक अर्च्योलोगिकल अभ्यास में पाया गया है कि आर्यो द्वारा बनाये गए स्तूप चतुष्कोणी या सष्टकोणी होते थे जो भारतीय सिंधु घाटी से विविध थे और फिर बाद के समय के रहे हों।

महापरिनिब्बान सुत्तमे भगवान ने चक्रवर्ती सम्राट के मृत्यु एवं सम्यकसम्बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद के संस्कार के बारेमे देशना की है। तथागत कहते है कि यह पंरपरा भूतकाल के चक्रवर्ती सम्राटो एवं बुद्धो के लिए रही है।

सम्यक-सम्बुद्ध एवं तथागत-अरहंत के अस्थियों को स्तूप में रखकर गया लकी पूजा करने हेतु; बौद्ध, संघ और संघ के प्रति जीवंत श्रद्धा-सत्कार बनी रहे।

बुद्ध; एक जीवंत व्यक्ति का दुःख मुक्ति का बुद्धत्व / अरहंत पद प्राप्ति करने का आदर्श दिखता है।

धम्म; यानी अनित्य भावी अस्तित्व है। जिन्हों ने बुद्धत्व प्राप्त किया है वह जो आज हमारे बीच नही है, यानी कि अस्तित्व अनित्य है। संघ; यानी धम्म मार्ग में चलकर सम्यकसम्बुद्ध या अरहंत पद प्राप्य कर सकते है।

बुद्धिस्ट होने की कारन से हम सब जानते है कि तथागत बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनकी पवित्र अस्थियां ली गई और उन पर राजा-महाराजा और श्रेष्ठियों द्वारा स्तूपों बनवाये गए। बादमे सम्राट अशोक ने पवित्र अस्थियों को एकत्रित करके 84000 विहारका निर्माण किया गया। जो आज भी दुनिया के हर बौद्धों के लिए पवित्र श्रध्दा का प्रतीक है।

यह बात तो आध्यात्मिक लोगो के बारे में ज़रूर है, मगर एक सामान्य बुद्धिस्ट के लिए नही रही है, क्योकि बुद्धिस्ट फैमिली में मृत्यु के बाद अग्नि-सस्कार करे या भूमि-संस्कार यह मृतक हुए व्यक्ति के  परिवार वालों की मर्ज़ी के मुताबित कर सकते हैं।

बौद्ध देशो में मृत्यु के बाद अलग अलग परंपरा दिखती है। इस लिए हमे भारत मे ऐशी बातो को स्वीकार करना चाहिए जो सामाजिक कु-रिवाज एवं अंधश्रद्धा का वहन न करतीं हो, मतलब हर बात का प्रमाणिक बौद्धिक स्पष्टीकरण होना बेहद ज़रूरी है।

कुछ प्रथा हमारे नवीन समय मे योग्य लग रही है।

जैसे कि..

भूमि संस्कार करना; जैसे गुजरात या अन्य राज्य में पूर्व-अस्पृश्य समाज मे जो दफन क्रिया चलती आयी है। जिसमे सामान्य लोगो के लिए पुरानी कब्र में शरीर नाश होने के बाद जहा केवल हड्डिया बचती है उसी जगह ताजा मृतक के भूमि संस्कार किये जाते है। आध्यात्मिक गुरु या साधु के लिए समाधि का प्रावधान है ।

यानी कि ईसाई या मुस्लिम की तरह एक व्यक्ति की एक कब्र न बनाना चाहिए। लेकिन सीमित जगह में पुराने दफन पर नई दफन क्रिया करनी चाहिए। जो वैज्ञानिक रूप से और पर्यावरण के लिए उपकारक है। भूतकाल में श्रीलंका एवं कुछ एशियाई जैसे देशो में बौद्ध समाज मे यह दफ़नक्रिया की पंरपरा मौजूद थी।

अग्नि संस्कार करना; आजकल कुछ बौद्ध देशो में हर बौद्ध विहार में मृतक को जलाने के लिए इलेक्ट्रिकल फर्नेश रखी जाती है। मृतक को कुछ समय के लिए विहार के प्रांगण में रखा जाता है, उसी अवधि धम्म सुत्तों का वाचन किया जाता है, बाद में मृत शारीर को जलाया जाता है।

बौद्ध संस्कार में मृत्यु बाद अस्थि क्या करते हैं?

कुछ आध्यातिमक लोगो की पवित्र अर्थियां ली जाती है, उन पवित्र अस्थियो को एक लंबी आयु वाले वृक्ष के पौधे के मूल में डाला जाता है, ताकि उन व्यक्ति के अस्तित्व से धम्म की प्रेरणा-स्रोत आने वाली जेनरेसन को मिलती रहे।

अस्थि को ध्यान केंद्र में वृक्ष लगा कर जमीन में डाल दे या फिर किसी बौद्ध विहार में ज़मीनखोद कर रख सकते हैं, अगर हम अपने बौद्ध परिवार में से किसीकी मृत्यु होती है तो, अगर सभी चाहते है तो बौद्ध विहार या ध्यान केंद्र में जाकर किसी छोटा वृक्ष जमीन में बो कर पर्यावरण को बचा सकते है, उस व्यक्ति की यादों में ऐसा कर सकते है।

मौजूदा-हाल की अगर बात करू तो गुजरात मे दीक्षा-धाम गुजरात केंद में बौद्ध मृतक के पवित्र अस्थियां ला कर जमीन में वृक्ष के मूलमे अस्थियां विसर्जित की जाती है।

हर महीने के द्वितीय रविवार को बौद्ध शिविर का आयोजन होता है, जिस समय पर बुद्धिस्ट मृतक के परिवार वाले अस्थियां लेकर आते है और उसी अवधी में एक सादा धार्मिक-कार्यक्रम रखा जाता है। जिसमे बहोत बड़े खर्चे का प्रावधान नही होता है।

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अगर अपने फैमिली में आने वाले जनरेशन तक बौद्ध-धम्म की प्रेरणा जगाये रखनी है तो यह प्रथा बहुत अच्छे से आगे बढती रहेगी, हमने इसे बौद्ध समाज मे प्रचारित करने का थोड़ा प्रयत्न किया है । उस से सभी बौद्ध मानसिक रुप से ग्रहणशील है। जो आधुनिक समय मे बौद्ध परंपरा के रुप में स्वीकारने में हमे हर्ज नही है।

जयभीम नमोबुद्धाय

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