बौद्ध स्तूप ये किस प्रकार के होते हैं?

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बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों में से एक है बौद्ध स्तूप। स्तूप, संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ होता है “गोलाकार ढांचा”। यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल होता है, जो न केवल उनकी धार्मिक आस्था को दर्शाता है बल्कि उनके वास्तुकला और कला के उत्कृष्ट नमूने भी पेश करता है।

बौद्ध स्तूपों का इतिहास और महत्व, उनकी संरचना, और उनके विभिन्न प्रकारों को समझना हमारी संस्कृति और इतिहास के एक अद्भुत पहलू को जानने जैसा है। इस लेख में, हम विस्तार से जानेंगे कि बौद्ध स्तूप किस प्रकार के होते हैं, उनके प्रकार क्या होते हैं और उनका बौद्ध धर्म में क्या महत्व है।

बौद्ध स्तूप: ये किस प्रकार के स्तूप होते हैं?

A. शरीर स्तूप B. परमभूमिक स्तूप C. वस्तुगत स्तूप D. संकल्प स्तूप

भौतिक स्तुप :- शरीर के अवशेषों पर बने स्तूप को भौतिक स्तूप कहा जाता है। विशेष रूप से यह स्तूप बुद्ध या अर्हंत भिखारी के शरीर के अवशेषों पर बना है।

परभूमिक स्तुप :- बुद्ध या उनके मुख्य शिष्य या प्रमुख भिखारियों द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं पर निर्मित स्तूप को परभूमिक स्तूप कहा जाता है। ये चीजें हैं सहारा की लाठी, एक चीवरा का टुकड़ा, एक भिखारी, पीने के लिए पानी का घड़ा।

उद्देश्य स्तुप :- बुद्ध या उनके मुख्य शिष्य जिन स्थानों पर गए थे या जिन स्थानों पर बने थे, वे वस्तुगत स्तूप कहलाते हैं। जैसे सारनाथ, कुशीनगर

संकल्प स्तुप :- बौद्ध धर्म पर अपार आस्थाओं से निर्मित स्तूप को संकल्प स्तूप कहा जाता है। इसे मनौती स्तूप या ओटिव स्तूप कहते हैं।

बौद्ध स्तूप का इतिहास और महत्व

बौद्ध स्तूपों का निर्माण भारत में मौर्य साम्राज्य के दौरान आरंभ हुआ। सम्राट अशोक, जो बौद्ध धर्म को अपनाने वाले पहले महान सम्राटों में से एक थे, ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न स्तूपों का निर्माण करवाया। अशोक ने विशेष रूप से उन स्थलों पर स्तूप बनाए, जहां भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए थे।

स्तूप न केवल बौद्ध धर्म के प्रतीकों के रूप में काम करते हैं बल्कि बौद्ध भिक्षुओं और अनुयायियों के लिए ध्यान, साधना और उपासना के केंद्र भी हैं। यह स्थल भगवान बुद्ध की शिक्षाओं, उनके निर्वाण और करुणा का स्मरण दिलाते हैं।

बौद्ध स्तूप की संरचना

बौद्ध स्तूप की संरचना गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है। इनकी डिजाइन में निम्नलिखित प्रमुख तत्व शामिल होते हैं:

अंडाकार गुंबद (अंडा)
स्तूप का मुख्य हिस्सा गुंबदनुमा होता है, जिसे अंडा कहते हैं। यह पृथ्वी का प्रतीक है और भगवान बुद्ध की समाधि को दर्शाता है।
हरमिका
यह गुंबद के शीर्ष पर बना एक वर्गाकार ढांचा होता है, जो ब्रह्मांड की पवित्रता का प्रतीक है।
चैत्य वृक्ष (यष्टि)
हरमिका के ऊपर लकड़ी या धातु का स्तंभ होता है, जिसे यष्टि कहते हैं। यह आध्यात्मिक ज्ञान और जागरूकता का प्रतीक है।
परिक्रमा पथ (प्रदक्षिणा पथ)
स्तूप के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक पथ बनाया जाता है। भक्त इसे घड़ी की दिशा में परिक्रमा करते हुए भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का स्मरण करते हैं।
तोरण
स्तूप के चारों ओर प्रवेश द्वार होते हैं जिन्हें तोरण कहते हैं। ये द्वार न केवल सुंदर नक्काशी से सज्जित होते हैं, बल्कि बौद्ध कथाओं और प्रतीकों को भी दर्शाते हैं।

बौद्ध स्तूपों के प्रकार

बौद्ध धर्म में स्तूपों को उनके उद्देश्य और संरचना के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। मुख्य रूप से बौद्ध स्तूप के पाँच प्रकार होते हैं:

1. धातु स्तूप

ये स्तूप उन स्थानों पर बनाए जाते हैं जहां भगवान बुद्ध के अवशेष (जैसे, अस्थियां, बाल, या नख) रखे जाते हैं। ये सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण स्तूप माने जाते हैं।

2. परिभोगिक स्तूप

इन स्तूपों का निर्माण उन वस्तुओं को रखने के लिए किया जाता है जो भगवान बुद्ध या उनके अनुयायियों द्वारा उपयोग की गई थीं।

3. स्मारक स्तूप

ये स्तूप उन स्थानों पर बनाए जाते हैं जहां भगवान बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थीं, जैसे कि लुंबिनी (जन्मस्थान), बोधगया (ज्ञान प्राप्ति स्थल), सारनाथ (पहला उपदेश) और कुशीनगर (महापरिनिर्वाण स्थल)।

4. वोटिव स्तूप

ये स्तूप बौद्ध अनुयायियों द्वारा अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं। इनका उद्देश्य भगवान बुद्ध की कृपा प्राप्त करना होता है।

5. सामाजिक स्तूप

इन स्तूपों का निर्माण बौद्ध समुदायों के लिए सांस्कृतिक और सामाजिक उद्देश्यों से किया जाता है।

प्रमुख बौद्ध स्तूप

भारत और विश्व भर में अनेक प्रमुख बौद्ध स्तूप हैं जो अपनी अनोखी संरचना और महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। कुछ प्रमुख स्तूप इस प्रकार हैं:

1. सांची स्तूप (मध्य प्रदेश, भारत)

यह भारत के सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध स्तूपों में से एक है। इसे सम्राट अशोक ने बनवाया था। इसकी तोरण और नक्काशी उत्कृष्ट बौद्ध कला का प्रदर्शन करती है।

2. महाबोधि स्तूप (बोधगया, बिहार)

यह स्तूप उस स्थान पर स्थित है जहां भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।

3. धमेक स्तूप (सारनाथ, उत्तर प्रदेश)

यह स्तूप उस स्थान पर स्थित है जहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।

4. श्रावस्ती स्तूप (उत्तर प्रदेश)

यह भगवान बुद्ध के प्रिय स्थलों में से एक है और यहां उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय व्यतीत किए थे।

5. बोरबोदूर स्तूप (जावा, इंडोनेशिया)

6. महाराष्ट्र स्तूप बड़े पैमाने पर गुफाओं में पाए जाते हैं। इस स्तूप के निर्माण का मुख्य कारण यह था कि तत्कालीन समाज का मानना था कि बिल्डर सहित उसके माता-पिता, पत्नी बच्चे और पोते-पोतियों को इस पुण्य का लाभ मिलना चाहिए। गुफाओं में लगे शिलालेख से इसका प्रमाण मिलता है।

यह विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध स्मारक है। यह स्तूप भगवान बुद्ध की शिक्षाओं और बौद्ध धर्म के प्रतीकों से परिपूर्ण है।

बौद्ध स्तूप का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व

बौद्ध स्तूप न केवल वास्तुकला के अद्भुत उदाहरण हैं बल्कि यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत भी हैं। यह भगवान बुद्ध के जीवन, उनकी शिक्षाओं और उनके आदर्शों का स्मरण करने का एक माध्यम है।

स्तूपों का निर्माण भौतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। ये शांति, ध्यान, और बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों का प्रचार करते हैं। साथ ही, यह स्थान विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं के बीच संवाद और सामंजस्य का प्रतीक भी बनते हैं।

निष्कर्ष:

बौद्ध स्तूप बौद्ध धर्म की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। ये स्तूप न केवल भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का प्रतीक हैं बल्कि वास्तुकला और कला के उत्कृष्ट नमूने भी हैं।

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आज के युग में, जहां आध्यात्मिकता और शांति की तलाश हर किसी को है, बौद्ध स्तूप हमें ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मिक शांति प्राप्त करने का संदेश देते हैं। इनका संरक्षण और प्रचार-प्रसार हमारी जिम्मेदारी है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इन अद्भुत धरोहरों से लाभान्वित हो सकें।

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