गर्भमंगल संस्कार बौद्ध धर्म में कैसे करें Baudh dhram garbh sanskar

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बौद्ध गर्भमंगल संस्कार करना क्यों उपयोगी है और कैसे करें आइये जानते हैं, गर्भावस्था के दौरान माँ और परिवार वालों को जिसका जो कर्तव्य है, अपने कर्तव्यों का सही से निर्वहन करना चाहिए, गर्भावस्था के तीन महीने बाद गर्भावस्था की भ्रूण स्थिति का अच्छे से पता चलने लगता है, इसलिए तीन महीने बाद गर्भमंगल शुभ संस्कार करना चाहिए। छह महीने बाद गर्भ में जीवन सक्षम होने लगता है, Baudh dhram garbh sanskar कार्य को किसी सम्मानित बौद्ध भिक्षु, या बौधाचार्य द्वारा संपन्न करावाया जाता है, यह शुभ-कार्य गर्भवती-माँ के गर्भ में पल रहे शिशु के सलामती के लिए किया जाता है, इसलिए यह संस्कार मुख्य रूप से सप्तम महीने में किया जाता है।

गर्भावस्था शुभ संस्कार कैसे करें:-

Baudh dhram garbh sanskar kaise kren 

गर्भावस्था से संबंधित हर किसी को समान ज्ञान होना चाहिए, यह ख्याल इस संस्कार को करते समय इस संस्कार में परिवार के डॉक्टर/गाइनेकोलॉजिस्ट/आशा को शामिल करना बहुत आवश्यक है, नियम बनाने वाले को इस मामले को ध्यान में रखना चाहिए। मेडिकल स्पेशलिस्ट को अंधविश्वास की गिरफ्त में नहीं आना चाहिए। इस विशेषज्ञ/डॉक्टर को केवल गर्भावस्था के बारे में मेडिकल ज्ञान देने तक सीमित रहना चाहिए।

बौद्ध संस्कार में गर्भावस्था के दौरान ये करें:-

इन विशेषज्ञों को गर्भावस्था के उचित पोषण के लिए आहार, विहार, टीका (टीकाकरण) आदि के बारे में गहरा मार्गदर्शन प्रदान करने की स्थिति बनाना चाहिए, इस संस्कार में गर्भवती माता को देवी-देवताओं का श्रृंगार नहीं करना चाहिए। इस संस्कार का उद्देश्य एक नए जीवन में कुशलता से आने के लिए संबंधित सभी के लिए शारीरिक, शारीरिक, पठन-पाठन, मानसिक अनुकूल स्थिति बनाना है।

यदि शुद्ध घी को अशुद्ध (गन्दा, दुर्गंधयुक्त) पात्र में रखेंगे तो शुद्ध घी भी अशुद्ध अर्थात दुर्गंधयुक्त हो जाएगा। शुद्ध घी की शुद्धता बनाए रखने के लिए पात्र का भी शुद्ध होना अति आवश्यक है। इस प्रकार गर्भित मां को भी शुद्ध पात्र की तरह होना चाहिए तभी वह शुद्ध घी की तरह शारीरिक व मानसिक रूप से परिपूर्ण शिशु को जन्म दे सकती है। इसके लिए उपरोक्तलिखित सभी बातों के अनुसार जीवन-यापन करते हुए ही गर्भिता अपने आपको प्रसव तक शुद्ध पात्र की तरह रख सकती हैं।

बौद्ध गर्भमंगल संस्कार हेतु पूजा की सामग्री:-

  • भगवान बुद्ध की मूर्ति, (मूर्ति बहुत छोटी न हो साथ ही मूर्ति सुन्दर होनी चाहिये)
  • यदि मूर्ति उपलब्ध न हो तो फोटो भी पूजा के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
  • भिक्क्षु संघ के लिये आसन, मूर्ति को रखने के लिए मेज अथवा आसन।
  • सफ़ेद वस्त्र (मेज पर बिछाने के लिये) यथा संभव नया।
  • मोमबत्ती व अगरबत्ती, पुष्प व पीपल के पत्ते, सफेद धागा।
  • धातु का लोटा अथवा मिट्‌टी का छोटा घड़ा (स्वच्छ जल भरा हुआ)।
  • फल, खीर /भोज्य पदार्थ/ग्लानपच्च सामर्थ अनुसार तथा श्रद्धानुसार।
  • बुद्ध धम्म में सभी संस्कार, रहित होते हैं।
  • उपयोग में आने वाली सभी सामग्री नीतिज्ञ तरीके से इस्तेमाल की जाती है।

बौद्ध गर्भ संस्कार पूजा विधि: Baudh dhram garbh sanskar puja

साफ़-सुथरे तथा ऊंचे स्थान पर तथागत बुद्ध की प्रतिमा/तस्वीर को संस्थापित करके पुष्पों से सुसज्जित कर लें, एक लोटे में स्वच्छ जल भरकर उसमें बोधिवृक्ष (पीपल) के पांच पत्रों सहित भगवान के सम्मुख रखना चाहिए, मोमबत्ती, धूप, अगरबत्ती, फल-फूल आदि सुगंधित सामग्री को भी सजा कर रखें, फिर उसका गर्भवती माता वाइट कपड़ों को पहन करके तथागत बुद्ध की प्रतिमा/तस्वीर के समीप यथावत नमन/प्रणाम करके मंगलकर्ता (बौद्ध भिक्षु) द्वारा त्रिशरण के साथ-साथ पंचशील ग्रहण करती हैं।

मंगलकर्ता गर्भवती को अष्टशील फ़ॉलो करने के लिए उपदेश देते  हैं, आखिर में मंगलकर्ता द्वारा गर्भवती स्त्री-पूजा भावना के साथ परित्राण-पाठ सुनती है, फिर मंगलकर्ता को भोजन-दान करती हैं, तथा उनके उपदेश से लाभान्वित होती हैं, गर्भवती माता की डिलेविरी तक अष्टशील के साथ-साथ कुछ और बातों को भी फ़ॉलो करना चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें:-

1. गर्भवती माँ का बेडरूम शांतपूर्ण एवं बेहतरीन बेंटीलेश युक्त होना चाहिए, ताकि वह सुकूनभरी नींद लेकर तनावमुक्त रहें।

2. गर्भवती का खान-पान शुद्ध व सादा होना चाहिए, उसे हल्का (सुपाच्य) भोजन करना, चाहिए तथा बहुत ज्यादा मसाले-दार (भारी) खान-पान से दूर रहना चाहिए।

3. गर्भवती माँ को रोजाना सुबह में सैर करना, व हल्का एक्सेर्साइज़ बहुत ज़रूरी होता है, वज़नदार सामान नहीं उठाना चाहिए।

4. गर्भवती को नेचुरल वातावरण में रहना चाहिए ताकि वह पॉल्यूशन फ्री रहकर प्योर हवा ले सके। इससे वह ख़ुशहाल रहेंगी।

6. ख़ुशहाल अवस्था में धार्मिक पुस्तकें जैसे भगवान बुद्ध और उनका धर्म, धम्मपद, आदि किताबों का अध्ययन करना चाहिए।

7. अगर साइंटिफिक नज़रिए से बात करूं तो गर्भवती स्त्री को विशेष रूप से इन दिनों में ब्रह्मचर्य फ़ॉलो करना चाहिए।

8. गर्भवती को टेंशन उत्पन्न करने वाले विषयों से दूर रहना चाहिए, जिससे वह मानसिक व शारीरिक रूप से हेल्दी रह सके।

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9. गर्भवती महिला को इस संस्कार के दौरान कोई जिम्मेदारी नहीं देनी चाहिए, मन प्रसन्न हो जाएगा, आवश्यक ज्ञान प्राप्त करेंगे, घर के सभी लोग गर्भ की देखभाल के लिए स्त्री की देखभाल करेंगे, ताकि परिवार में एक क्यूट सा बेबी में परिवार लाया जाए।

10. इस अवसर पर स्त्री द्वारा मानसिक शांति के लिए आदर्श, त्रिसरण-पंचशील ग्रहण, महामंगल सुत्त, सब्बासुख गाथा, चिकित्सा विशेषज्ञ मार्गदर्शन, अनापनासती, धम्म पालन गाथा, सरनात्तय गाथा लेकर संस्कार करना चाहिए।

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यह संस्कार तीन महीने बाद करना पड़ता है, अक्सर इस रस्म को खूबसूरती और संस्कारों की सजावट के रूप में देखा जाता है। मुख्य रूप से इस मामले से बचना चाहिए। जन्मजात आत्मा शारीरिक, पाठक, मानसिक शक्ति के साथ आना चाहिए। इसलिए संस्कार जरूरी है। पैदा हुए बच्चे विकलांग पैदा नहीं होने चाहिए। इसके लिए माता-पिता और परिवार समुदाय ध्यान रखे। इसलिए यह रस्म रस्म न बन जाये बल्कि  इसका ख्याल रखना चाहिए।

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बौद्ध गर्भमंगल संस्कार को शांतिपूर्ण तरीके से पारित करने के लिए आवश्यक उतनी ही सभा बुलाई जानी चाहिए।

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