बौद्ध नामकरण संस्कार बच्चों का कैसे करें, सम्पूर्ण जानकारी

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बौद्ध नामकरण संस्कार कैसे करें: बेबी (बच्चे) के जन्म के बाद यथासंभव शीघ्र अति शीघ्र इस बौद्ध नामकरण संस्कार Baudh naam sanskar को करना चाहिये, क्योंकि न किये जाने की स्थिति में बालक को बेमतलब नामों से पुकारा जाने लगता है, नाम यदि मतलब से भरा हुआ नहीं है, सुन्दर नहीं है, तो बुलाने पर मन में खुशी नहीं होगी। सच बताऊ तो नाम महज़ एक शब्द मात्र नहीं होता, बल्कि वह एक सम्बोधन है जिससे बेबी की पहचान होती है इसलिये ‘नाम’ मन की सहजता में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। Buddhist naming ceremony for children.

बौद्ध नामकरण संस्कार विधि: Buddhist naming ceremony

नाम लाइफ में एक ही बार रखा जाता है, इसलिए धम्म बंधुओं नाम का अर्थ अच्छा होना चाहिये, बालक के दादा-दादी तथा माता-पिता को बौद्ध भिक्षुगण के साथ बैठकर ‘इच्छित नामों’ पर सोच विचार कर चर्चाकर लेनी चाहिये। और इस प्रकार सलेक्ट (चुने) किये गये ‘नाम’ को एक वाइट पेपर पर लिखकर, जहॉं पूजा संस्कार की जानी है वहां पर रखना चाहिये, Buddhist naming ceremony in india.

नामकरण संस्कार Baudh naam sanskar जहाँ तक संभव हो सके प्रातःकाल में किया जाना चाहिये, बच्चे की मम्मा (माता) को सुबह उठकर बालक को नहलाकर साफ़ व शुभ कपडे पहनाने चाहिये, परिवार के अन्य लोगों को भी स्वच्छ व यथा संभव सफ़ेद कपडे पहनने चाहिये। घर की साफ-सफाई कर घर को अच्छे से सजाया जाना चाहिये, घर का वातावरण खुशहाल रखना चाहिये। naming ceremony in buddhism.

बौद्ध नामकरण संस्कार पूजा की सामग्री

  • भगवान बुद्ध की मूर्ति, (मूर्ति बहुत छोटी न हो साथ ही मूर्ति सुन्दर होनी चाहिये)
  • यदि मूर्ति उपलब्ध न हो तो फोटो भी पूजा के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
  • भिक्क्षु संघ के लिये आसन, मूर्ति को रखने के लिए मेज अथवा आसन।
  • सफ़ेद वस्त्र (मेज पर बिछाने के लिये) यथा संभव नया।
  • मोमबत्ती व अगरबत्ती, पुष्प व पीपल के पत्ते, सफेद धागा।
  • धातु का लोटा अथवा मिट्‌टी का छोटा घड़ा (स्वच्छ जल भरा हुआ)।
  • फल, खीर /भोज्य पदार्थ/ग्लानपच्च सामर्थ अनुसार तथा श्रद्धानुसार।
  • बुद्ध धम्म में सभी संस्कार, रहित होते हैं।
  • उपयोग में आने वाली सभी सामग्री नीतिज्ञ तरीके से इस्तेमाल की जाती है।

नामकरण संस्कार हेतु पूजा की विधि:

सबसे पहले घर-द्वार की अच्छे से साफ़-सफाई करलें, आप और आपके सभी फैमिली मेम्बेर्स नहा-धोकर साफ़ सुथरे कपडे पहन लें। यदि मिम्किन हो तो सफ़ेद कपडे पहनने चाहिए। घर का माहोल (कूल) मंगलमय हो जिससे एक हंसी ख़ुशी बनी रहे जिससे आपके आये हुए मेहमान चाहकर भी कहीं इधर-उधर बाहर नहीं रह पायेगा, और घर में (पोजिटिव) सकारात्मक (वेव) तरंगों का वास होगा। baudh naam sanskar puja

भगवान बुद्ध की प्रतिमा ऊॅंचे आसन पर जिस पर सफ़ेद कपड़ा जैसे (मेज़ पोश) वस्त्र (मुमकिन तो नया) बिछा होना चाहिए, तथा समस्त पूजा सामग्री यथा मोमबत्ती अगरबत्ती, पुष्प, पीपल के पत्ते फल खीर आदि व्यवस्थित ढंग से सजानी चाहिए। How to Perform a Buddhist Naming Ceremony.

मिट्‌टी अथवा धातु के लोटे में पानी भरकर उसमें पीपल के पत्ते रखते है। सफेद धागे का बना तिहरा (तीन तार का) मंगलसूत्र बनाकर उसका एक छोर लोटे में बांधकर भगवान बुद्ध की प्रतिमा के पीछे से घुमाकर भिक्क्षु संघ और फिर प्रतिमा के सम्मुख बैठे परिवारी जन तथा अन्य उपासक/उपासिकाओं के दोनो हाथों में पकड़ाकर उसके दूसरे छोर को लोटे में डाल देते है। baudh naam sanskar kaise kre.

तत्पश्चात् ‌ पति-पत्नी को भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष मोमबत्ती, अगरबत्ती जलानी चाहिये तथा भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करके भगवान बुद्ध को तीन बार पंचाग प्रणाम करना चाहिये। baudh dhram naam sanskar kaise kre.

1. उपस्थित उपासक/उपासिकाओं को भी क्रमशः भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष मोमबत्ती/अगरबत्ती जलानी चाहिए तथा भगवान बुद्ध के चरणों में पुष्प अर्पित करना चाहिए।

2. तदोपरान्त संस्कार हेतु उपस्थिति भिक्क्षु संघ की तीन बार वन्दना करनी चाहिये तथा शील याचना हेतु संस्कार कराने का निवेदन करना चाहिये।

बौद्ध नामकरण सील याचना:

  • उपासकगण (एक साथ)- ओकास, अहं भन्ते! तिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।
  • दुतियम्पि, ओकास, अहं भन्ते! तिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।
  • ततियम्पि, ओकास, अहं भन्ते! तिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।
  • भन्ते या आचार्य— यमहं वदामि, तं वदेहि/वदेथ।
  • उपासक— आम,भन्ते या आचरियो।
  • भन्ते- नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स (एक बार)
  • उपासक- नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स (तीन बार)

भन्ते-

 

त्रिशरण

 

 
 

बुद्धं सरणं गच्छामि।
धम्मं सरणं गच्छामि।
संघं सरणं गच्छामि।

दुतियम्पि, बुद्धं सरणं गच्छामि।
दुतियम्पि, धम्मं सरणं गच्छामि।
दुतियम्पि, संघं सरणं गच्छामि।
ततियम्पि, बुद्धं सरणं गच्छामि।
ततियम्पि, धम्मं सरणं गच्छामि।
ततियम्पि, संघं सरणं गच्छामि।

 

 
 

पंचशील

 

 
 

पाणातिपाता वेरमणी सिंक्खापदं समादियामि।
अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
सुरामेरयमज्ज, पमादट्‌ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।

 

 

भन्ते-

 

तिसरणेन सद्धिं पंचशीलं धम्मं साधुकं सुरक्खितं कत्वा अप्पमादेन संपादेतब्वं।
उपासकगण—आम भन्ते।

 

 

शील ग्रहण करने तक सभी उपासकों को दोनों हाथ जोड़कर प्रतिमा की और मुंहकर के दोनों घुटने तथा पंजों के बल (वज्रआसन) में बैठना चाहिये। शील ग्रहण करने के पश्चात् भगवान बुद्ध को तीन बार पंचाग प्रणाम तथा भिक्क्षु संघ को भी तीन बार पंचाग प्रणाम करना चाहिये।


पूजा गाथायें:

पुष्प पूजा 🙏

 

वण्ण गन्ध गुणोपेतं एतं कुसुम सन्तति।
पूजयामि मुनिन्दस्स, सिरीपाद सरोरूह।।

 

 

धूप पूजा 🙏

 

गन्धसम्भारयुत्तेन धूपेनाहं सुगन्धिना।
पूजये पूजनेय्यन्तं, पूजाभाजनमुत्तमं।।

 

 

सुगन्धि पूजा 🙏

 

सुगन्धिकाय वदन अनन्त गुणगन्धिना।।
सुगन्धिनाहं गन्धेन पूजयामि तथागतं।।

 

 

प्रदीप 🙏

 

घनसारप्पदित्तेन दीपेन तमधन्सिना।
तिलोकदीपं सम्बुद्धं पूजयामि तमोनुदं।।

 

 

चैत्य पूजा 🙏

वन्दामि चेतियं सब्बं सब्बाठानेसु पतिटि्‌ठतं।
सारीरिकधातु महाबोधिं बुद्धरूपं सकलं सदा।।

 

 

बोधि वन्दना 🙏

यस्स मूले निसिन्नोव सब्बारि विजयं अका।
पत्तो सब्बञ्‌ञुतं सत्था वन्दे तं बोधिपादपं।।
इमे हेते महाबोधि लोकनाथेन पूजिता।
अहम्पि ते नमस्सामि बोधिराजा नमत्थु ते।।

 

 

इसके बाद बुद्ध वन्दना धम्म वंदना, संघ वंदना करनी चाहिए।


बुद्ध, धम्म एवं संघ वन्दना

1. बुद्ध वन्दना

  • इतिपि सो भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो, विज्जाचरण सम्पन्नो,
  • सुगतो लोकविदु अनुत्तरो, पुरिसदम्म सारथी सत्था,देवमनुस्सानं बुद्धो भगवाति।
  • बुद्धं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।
  • ये च बुद्धा अतीता च, ये च बुद्धा अनागता।
  • बुद्धं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।
  • पच्चुपन्ना य चे बुद्धा, अहं वन्दामि सब्बदा ।2।
  • नत्थि मे सरणं अञ्‌ञं बुद्धो मे सरणं वरं।
  • एतेन सच्चवज्जेन, होतु मे जयमंगलं ।3।
  • उत्तमंगेन वन्देहं, पादपंसु वरूत्तमं।
  • बुद्धे यो खलितो दोसो, बुद्धो खमतु तं ममं ।4।
  • यं किञि्‌च रतनं लोके विज्जति विविधा पुथु।
  • रतनं बुद्ध समं नत्थि तस्मा सोत्थि भवन्तु मे ।5।
  • यो सन्निसिन्नो वरबोधिमूले मारं ससेनं महति विजेत्वा।
  • सम्बोधि मागच्छि अनन्तञाणो लोकुत्तमो तं पणमामि बुद्धं ।6।

2. धम्म वन्दना:

  • स्वाखातो भगवता धम्मो सन्दिटि्‌ठको, अकालिको,
  • एहिपस्सिको, ओपनेय्यिको, पच्चत्तं वेदितब्बो, विञ्‌ञूहीति ।
  • धम्मं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि ।1।
  • ये-च-धम्मा अतीता च, ये-च-धम्मा अनागता।
  • पच्चुप्पन्ना च ये धम्मा अहं वन्दामि सब्बदा।2।
  • नत्थि-मे-सरणं अञ्‌ञ-धम्मो मे सरणं-वरं।
  • एतेन सच्चवज्जेन होतु मे जयमंगलं ।3।
  • उत्तमंगेन वन्देहं धम्मञ्‌च दुविधं वरं ।
  • धम्मे यो खलितो दोसो धम्मो खमतु तं ममं।4।
  • यं किञि्‌च रतनं लोके, विज्जति विविधा पुथु।
  • रतनं धम्म समं नत्थि तस्मा, सोत्थि भवन्तु मे। 5।
  • अट्ठांगिको अरिय पथो जनानं, मोक्खप्पवेसो उजुको व मग्गो।
  • धम्मो अयं सन्तिकरो पणीतो, निय्यानिको तं पणमामि धम्मं ।6।

3. संघ वन्दना:

  • सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, उजिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो,
  • ञायपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, सामीचिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानि अट्‌ठापुरिस
  • पुग्गला, एस भगवतो सावकसंघो,आहुनेय्यो, पाहुनेय्यो, दक्खिनेय्यो, अञ्‌जलिकरणीयो, अनुत्तरं पुञ्‌ञक्खेत्त
  • लोकस्साति। संघं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।
  • ये चं संघा अतीता च, ये च संघा अनागता।
  • पच्चुप्पन्ना च ये संघा, अहं वन्दामि सब्बदा।2।
  • नत्थि मे सरणं अञ्‌ञं संघो में सरणं वरं।
  • ऐतेन सच्च वज्जेन, होतु मे जयमंगलं।3।
  • उत्तमंगेन वन्देहं, संघञ्‌च तिविधोत्तमं।
  • संघे यो खलितो दोसो, संघो खमतु तं ममं।4।
  • यं किञि्‌च रतनं लोके, विज्जति विविधा पुथु।
  • रतनं संघ समं नत्थि तस्मा, सोत्थि भवन्तु में।5।
  • संघो विसुद्धो वर दक्खिणेय्यों, सन्तिन्द्रियो सब्बमलप्प हीनो।
  • गुणेहि नेकेहि समद्धिपत्तो, अनासवो तं पणमामि संघं।6।

इसके पश्चात विद्वान बौद्ध भिक्षु महामंगल सुत्त, करणीय मेत्तसुत्त खन्दपरित्त, अगुलिमाल सुत्त जय परित्तं, जयमंगल गाथा, प्रतितित्य समुत्पाद तथा पुञ्ञनुमोदन आदि का पाठ समयानुसार करते हैं। गर्भवती स्त्री तथा सभी उपासकों को एकाग्र मन से परित्राण सूत्रों का पाठ सुनना चाहिए। जिस समय परित्राण पाठ चल रहा हो बीच में उठना नहीं चाहिये। पूर्ण श्रद्धा भाव से परित्राण पाठ का श्रवण करना चाहिए।

परित्राण पाठ समाप्त होने पर भगवान बुद्ध को तीन बार पंचाग प्रणाम करना चाहिए। आदरणीय भिक्क्षु और भिक्क्षु संघ को तीन बार पंचाग प्रणाम करना चाहिये। उपस्थित सभी उपासक—उपासिका गण को साधु—साधु-साधु कह कर अनुमोदन करना चाहिए। baudh naam sanskar kaise kre.

तदोपरान्त पूज्य भिक्षु से देसना के लिये याचना करनी चाहिए (यदि समयाभाव न हो तो) धम्म देसना के पश्चात् पुनः उपस्थित सभी लोगों द्वारा साधु-साधु-साधु कह कर अनुमोदन करना चाहिये।

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पूजा की विधि सम्पन्न होने के पश्चात् भिक्क्षु (पहले से निश्चित) बालक को इच्छित नाम से पुकारते हैं तदोपरान्त घर के बुजुर्ग (बालक के) दादा-दादी, नाना-नानी तथा माता-पिता बालक को उसके नाम से पुकारते है तदोपरान्त घर के बुजुर्ग (बालक के) दादा-दादी, नाना-नानी तथा माता-पिता बालक को उसके नाम से पुकारते है उपस्थित लोग साधुवाद करते हुये ‘नाम’ का अनुमोदन करते है। भिक्क्षु बच्चे के माता-पिता तथा बच्चे के दाहिने हाथ में पूजा का धागा बांधते है। baudh dhram me naam sanskar kaise kre.

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उपस्थित भिक्क्षु संघ को परिष्कार दान (चीवर, दवाई, ब्लेड, छड़ी, छाता, तौलिया, साबुन, मंजन,ब्रशतथा नकद धनराशि आदि) तथा अन्य उपयोगी वस्तुयें दान करनी चाहिये।

यह पूरा संस्कार हर्ष का है अतः घर-परिवार की महिलायें मिलकर मंगल-गीत गाकर आनन्दोत्सव मनाती है। सार्मथ्यनुसार सभी को भोजन भी कराया जा सकता है।

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