बौद्ध रीती रिवाज से बच्चे का मुंडन संस्कार कैसे कराएँ?

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बच्चे के पैदा होने के बाद सर से गर्भ में बने बाल उतरवाने यानीं “मुंडन” कराने का यह विशेष संस्कार जन्म के तीन साल के अंदर अपनी सुविधा के अनुसार कभी भी मुंडन करवाया जा सकता है, इसे केशकप्पन अथवा केशकर्तन (मुंडन) संस्कार भी कहा सकते है, इस बौद्ध मुंडन संस्कार को यदि किसी बुद्ध विहार अथवा बुद्धिस्ट तीर्थ स्थल पर या फिर अपने घर पर भी बड़ी ही सहजता एवं अपनी क्षमतानुसार कार्यक्रम आयोजित करके भी किया जा सकता है, तो धम्म बंधुओं आइये बौद्ध मुंडन संस्कार विधि जानते है। Tonsuring Ceremony mundan sanskar.

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:

1. तथागत बुद्ध की सुन्दर मूर्ति।

2. यदि मूर्ति मौजूद न हो तो फोटो पूजा हेतु उपयोग किया जा सकता है।

3. मूर्ति के टेबल तथा, भिक्क्षु-संघ के लिये भी उचित आसन

4. सफ़ेद रंग का कपड़ा (मेज पोश) यदि संभव हो तो नया

5. अगरबत्ती व मोमबत्ती

6. फूल व पीपल के साफ़ पत्ते, सफेद धागा

7. धातु का लोटा या मिट्‌टी का छोटा घड़ा  (स्वच्छ पानी भरा हुआ।)

8.  खीर/फल /भोज्य पदार्थ/ अपनी क्षमतानुसार तथा श्रद्धानुसार

सम्मानित बौद्ध भिक्क्षु द्वारा:

  1. केसा लोमा नखा दन्ता तचो
  2. तचो दन्ता नखा लोमा केसा
  3. केसा लोमा नखा दन्ता तचॉं

बौद्ध भिक्षु द्वारा उच्चारण करते हुए बुद्धिस्ट मुंडन संस्कार Buddhist mundan कार्य को शुरू करने के लिए नाई को बोलते हैं, इसके बाद सावधानीपूर्वक कैंची से तीन बार बच्चे के दो चार बाल काट दिए जाते हैं, इसके बाद स्टरलाइज़ उस्तरा व नया ब्लेड से नाई को मुंडन (बाल हटाने) का कार्य शुरू करने को निर्देशित करें, बच्चे जबकि छोटे होते हैं इसलिए परिवार के  एक-दो सदस्य को बच्चे को पकड़ कर, सावधानी से मुंडन संस्कार का कार्य शुरू कराएं ताकि, कहीं कटे नही  क्योंकि छोटे बच्चे रोने लगते हैं जिससे हाथ पैर से चलाने लगते हैं इस बीच में यदि कोई त्रुटि हो जाती है तो कट सकता है, इसलिए बड़ी ही सावधानी के साथ बहला-फुसलाकर मुंडन कार्य को संपन्न कराना होता है, तत्पश्चात मुंडन संस्कार पूरा होने के बाद, अच्छे से बच्चे को नहला कर नए कपड़े पहनाते हैं, और माता या पिता बच्चे को गोद में लेकर आदरणीय भंते जी द्वारा त्रिशरण एवं पंचशील ग्रहण करते हैं। Mundan head shaving ceremony.

पूजा की विधि:

सबसे पहले तो घर की साफ सफाई कर ले तथा स्वयं भी नहा धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहनने, अगर संभव हो सके तो सफेद कपड़ा पहने क्योंकि सफेद रंग का कपड़ा पहनना सकारात्मक माना जाता है, घर का माहौल नीट एंड क्लीन यानि एक खुशहाली जैसा वातावरण होना चाहिए, जिससे आपके आए हुए रिश्तेदार और मेहमान प्रसन्न रहें और मंगल कामना की बातें करें ताकि सकारात्मक तरंगों का माहौल क्रिएट हो, जिससे कार्यक्रम में और अधिक आनंद प्राप्त होगा।

तथागत बुद्ध की तस्वीर/प्रतिमा ऊंचे स्थान पर होनी चाहिए. संभव हो सके तो सफेद कपड़ा (मेज-पोश) बिछा होना चाहिए, सभी प्रकार के पूजा सामग्री हेतु सामान जैसे: अगरबत्ती, मोमबत्ती, फल, फूल, मेवा, मिठाई (बौद्ध वृक्ष) पीपल के पत्ते, आदि एक सिस्टमैटिक ढंग से सजाकर रखनी चाहिए।

धातु का एक लोटा होना चाहिए, यदि धातु का लोटा नहीं मौके पर हो तो मिट्टी के लोटे से भी कार्य किया जा सकता है, जिसमें पीपल के पत्ते को रखा जाता है, साथ ही सफेद धागा होना चाहिए जिसको तीन बार लपेटकर एक मोटा मंगलसूत्र की तरह बना कर, एक छोर लोटे में बांधकर एवं तथागत बुद्ध की प्रतिमा के पीछे से घुमाकर आदरणीय भंते संघ और प्रतिमा के सामने बैठे परिवार के सदस्यों तथा अन्य उपासक उपासिकों के दोनों हाथों में पकड़ा कर लोटे में डाल देते हैं, ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि एक कनेक्शन क्रिएट किया जा सके।

फिर उसके बाद हस्बैंड-वाइफ को तथागत बुद्ध की प्रतिमा के सामने अगरबत्ती, मोमबत्ती जलाने चाहिए साथ ही भगवान बुध का स्मरण कर उनके चरणों में फूल, अर्पित करके तथागत बुद्ध को तीन बार पंचाग नमस्कार करना चाहिये। तत्पश्चात बौद्ध संस्कार के लिए मौजूद बौद्ध भिक्षु संघ को तीन बार वंदना करना चाहिए और सील योजना हेतु संस्कार करने का रिक्वेस्ट करना चाहिए।

सील याचनासील याचना:

उपासकगण (एक साथ):

  • ओकास, अहं भन्ते! तिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।
  • दुतियम्पि, ओकास, अहं भन्ते! तिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।
  • ततियम्पि, ओकास, अहं भन्ते! तिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।
  • भन्ते या आचार्य— यमहं वदामि, तं वदेहि/वदेथ।
  • उपासक- आम,भन्ते या आचरियो।
  • भन्ते- नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स (एक बार)
  • उपासक- नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स (तीन बार)

भन्ते- त्रिशरण:

  • बुद्धं सरणं गच्छामि।
  • धम्मं सरणं गच्छामि।
  • संघं सरणं गच्छामि।
  • दुतियम्पि, बुद्धं सरणं गच्छामि।
  • दुतियम्पि, धम्मं सरणं गच्छामि।
  • दुतियम्पि, संघं सरणं गच्छामि।
  • ततियम्पि, बुद्धं सरणं गच्छामि।
  • ततियम्पि, धम्मं सरणं गच्छामि।
  • ततियम्पि, संघं सरणं गच्छामि।

पंचशील:

  • पाणातिपाता वेरमणी सिंक्खापदं समादियामि।
  • अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
  • कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
  • मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
  • सुरामेरयमज्ज, पमादट्‌ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।

भन्ते

  • तिसरणेन सद्धिं पंचशीलं धम्मं साधुकं सुरक्खितं कत्वा अप्पमादेन संपादेतब्वं।

उपासकगण—आम भन्ते।

नियमानुसार जब तक शील ग्रहण करने की प्रक्रिया चल रही होती है, तब तक सभी उपासक/उपास्थिका को हाथ जोड़कर तथागत बुद्ध की प्रतिमा की ओर मुंह करके (वज्रासन मुद्रा) में यानी दोनों घुटने तथा पंजों के  बल पर बैठना चाहिए सील ग्रहण करने के बाद तथागत बुद्ध को तीन बार पंचांग नमस्कार साथ ही साथ भिक्क्षु संघ को तीन बार पंचांग नमस्कार करना चाहिए।

मुंडन संस्कार पूजा गाथायें:

पुष्प पूजा

वण्ण गन्ध गुणोपेतं एतं कुसुम सन्तति।

पूजयामि मुनिन्दस्स, सिरीपाद सरोरूह।।

धूप पूजा

गन्धसम्भारयुत्तेन धूपेनाहं सुगन्धिना।

पूजये पूजनेय्यन्तं, पूजाभाजनमुत्तमं।।

सुगन्धि पूजा

सुगन्धिकाय वदन अनन्त गुणगन्धिना।।

सुगन्धिनाहं गन्धेन पूजयामि तथागतं।।

प्रदीप

घनसारप्पदित्तेन दीपेन तमधन्सिना।

तिलोकदीपं सम्बुद्धं पूजयामि तमोनुदं।।

चैत्य पूजा

वन्दामि चेतियं सब्बं सब्बाठानेसु पतिटि्‌ठतं।

सारीरिकधातु महाबोधिं बुद्धरूपं सकलं सदा।।

बोधि वन्दना

यस्स मूले निसिन्नोव सब्बारि विजयं अका।

पत्तो सब्बञ्‌ञुतं सत्था वन्दे तं बोधिपादपं।।

इमे हेते महाबोधि लोकनाथेन पूजिता।

अहम्पि ते नमस्सामि बोधिराजा नमत्थु ते।।

इसके बाद बुद्ध वन्दना धम्म वंदना, संघ वंदना करनी चाहिए।

बुद्ध, धम्म एवं संघ वन्दना

बुद्ध वन्दना:

इतिपि सो भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो, विज्जाचरण सम्पन्नो,

सुगतो लोकविदु अनुत्तरो, पुरिसदम्म सारथी सत्था,देवमनुस्सानं बुद्धो भगवाति।

बुद्धं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।

ये च बुद्धा अतीता च, ये च बुद्धा अनागता।

बुद्धं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।

पच्चुपन्ना य चे बुद्धा, अहं वन्दामि सब्बदा ।2।

नत्थि मे सरणं अञ्‌ञं बुद्धो मे सरणं वरं।

एतेन सच्चवज्जेन, होतु मे जयमंगलं ।3।

उत्तमंगेन वन्देहं, पादपंसु वरूत्तमं।

बुद्धे यो खलितो दोसो, बुद्धो खमतु तं ममं ।4।

यं किञि्‌च रतनं लोके विज्जति विविधा पुथु।

रतनं बुद्ध समं नत्थि तस्मा सोत्थि भवन्तु मे ।5।

यो सन्निसिन्नो वरबोधिमूले मारं ससेनं महति विजेत्वा।

सम्बोधि मागच्छि अनन्तञाणो लोकुत्तमो तं पणमामि बुद्धं ।6।

धम्म वन्दना:

स्वाखातो भगवता धम्मो सन्दिटि्‌ठको, अकालिको,

एहिपस्सिको, ओपनेय्यिको, पच्चत्तं वेदितब्बो, विञ्‌ञूहीति ।

धम्मं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि ।1।

ये च धम्मा अतीता च, ये च धम्मा अनागता।

पच्चुप्पन्ना च ये धम्मा अहं वन्दामि सब्बदा।2।

नत्थि मे सरणं अञ्‌ञ धम्मो मे सरणं वरं।

एतेन सच्चवज्जेन होतु मे जयमंगलं ।3।

उत्तमंगेन वन्देहं धम्मञ्‌च दुविधं वरं ।

धम्मे यो खलितो दोसो धम्मो खमतु तं ममं।4।

यं किञि्‌च रतनं लोके, विज्जति विविधा पुथु।

रतनं धम्म समं नत्थि तस्मा, सोत्थि भवन्तु मे। 5।

अट्ठांगिको अरिय पथो जनानं, मोक्खप्पवेसो उजुको व मग्गो।

धम्मो अयं सन्तिकरो पणीतो, निय्यानिको तं पणमामि धम्मं ।6।

संघ वन्दना:

सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, उजिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो,

ञायपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, सामीचिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानि अट्‌ठापुरिस

पुग्गला, एस भगवतो सावकसंघो,आहुनेय्यो, पाहुनेय्यो, दक्खिनेय्यो, अञ्‌जलिकरणीयो, अनुत्तरं पुञ्‌ञक्खेत्त

लोकस्साति। संघं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।

ये चं संघा अतीता च, ये च संघा अनागता।

पच्चुप्पन्ना च ये संघा, अहं वन्दामि सब्बदा।2।

नत्थि मे सरणं अञ्‌ञं संघो में सरणं वरं।

ऐतेन सच्च वज्जेन, होतु मे जयमंगलं।3।

उत्तमंगेन वन्देहं, संघञ्‌च तिविधोत्तमं।

संघे यो खलितो दोसो, संघो खमतु तं ममं।4।

यं किञि्‌च रतनं लोके, विज्जति विविधा पुथु।

रतनं संघ समं नत्थि तस्मा, सोत्थि भवन्तु में।5।

संघो विसुद्धो वर दक्खिणेय्यों, सन्तिन्द्रियो सब्बमलप्प हीनो।

गुणेहि नेकेहि समद्धिपत्तो, अनासवो तं पणमामि संघं।6।

मौजूद सभी  उपासक/उपासिकाअपने चित्र को एकाग्र करके परित्राण सूत्रों का पाठ ध्यानपूर्वक सुनते हैं जिस समय प्परित्राण  पाठ बौद्ध भिक्षु के द्वारा जब चल रहा हो उस बीच में किसी को पूछना नहीं चाहिए तथा संपूर्ण श्रद्धा भाव से एवं शांति का परिचय देते हुए परित्राण पाठ का श्रवण करना चाहिए ।

सभी उपासकों को एकाग्र मन से परित्राण सूत्रों का पाठ सुनाते हैं। जिस समय परित्राण पाठ चल रहा हो बीच में उठना नहीं चाहिये। पूर्ण श्रद्धा भाव से परित्राण पाठ का सुनना चाहिए।

यह भी पढ़ें: भगवान बुद्ध एवं तथागत बुद्ध क्यों कहते है?

परित्राण पाठ समापन के पश्चात तथागत बुद्ध को तीन बार पंचांग नमस्कार करना चाहिए, सम्मानित भिक्क्षु और भिक्क्षु संघ को तीन बार पंचांग नमस्कार करना चाहिए,उपस्थित सभी गणमान्य एवं उपासक/उपासिका को तीन बार साधु साधु साधु कहकर अनुमोदन करना चाहिए।

फिर उसके बाद आदरणीय भिक्क्षु से देसना (धर्म का उपदेश देना) के लिये निवेदन करनी चाहिए (यदि समय कम न हो तो) बौद्ध-धम्म देसना के फिर से मौजूद सभी सम्मानित लोगों द्वारा तीन बार साधु-साधु-साधु कह कर अनुमोदन करना चाहिये।

यह भी पढ़ें: बौद्ध धर्म में गर्भमंगल संस्कार कैसे करें

बच्चे के उज्जवल भविष्य व सलामती के लिए धम्म देसना एवं  परित्राण पाठ आदरणीय भिक्क्षु संघ द्वारा दी जाती है। मौजूद बौद्ध उपासकों द्वारा पुज्जानुमोदन साधु-साधु-साधु कहकर किया जाता है।

नोट- मुंडन संस्कार कंप्लीट होने के बाद यानि बच्चे के सर से बाल उतरने के बाद, आटे की लोई बनाकर उसमें रख लेना चाहिए, लेकिन ध्यान रखें अक्सर कुछ लोग आटे की लोई को नदी में बहा देते हैं कृपया ऐसे कार्य करने से बचें, क्योंकि नदी में रहने वाले मासूम जीव-जंतु द्वारा इसे खा लेते हैं जिससे उनके मुंह=पेट में बाल फंस कर जोकि नुकसानदायक साबित होता हैं।

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नैतिक जिम्मेदारी:  उपासक अपने घर से सम्मानित भिक्क्षु जन को चीवर-दान, भोजन-दान, परिष्कार-दान  किया जाता है, और प्रश्न भाव से कार्यक्रम को संपन्न करते हैं,  परिवार में एक हसी खुशी का माहौल होता है गीत संगीत का कार्यक्रम होता है महिलाएं आपस में गीत गाती हैं सभी उपस्थित सम्मानित जनों को सामर्थ के अनुसार स्वादिष्ट भोजन व जलपान कराया जाता है, मुंडन संस्कार यदि घर पर किया गया हो तो कोशिश करें कि शाम के वक्त परिवार सहित बच्चे को लेकर बौद्ध विहार जरूर जाएं।

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